Sunday, July 10, 2011

इस वर्चुअल दुनिया में अकेले हम अकेले तुम

आजकल सिर्फ़ रात को सोने के बाद और सुबह उठने से पहले इंटरनेट की ज़रूरत नहीं रहती. दिन भर दफ़्तर में, सुबह-शाम घर में, और रास्ते में मोबाइल फ़ोन पर हर जगह इंटरनेट की जरुरत महसूस होती है,और जब से यह इन्टरनेट ख़ुद तारों के बंधन से मुक्त हुआ है तबसे उसने हमें और कसकर जकड़ लिया है. वाईफ़ाई यानी वायरलेस इंटरनेट और मोबाइल इंटरनेट के आने के बाद तो ब्लैकबेरी और आईफ़ोन ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है.अरे हर उपकरण में नेट चाहिए.
मेरे फ़ेसबुक और ओरकुट वाले दोस्तों की संख्या 200-300 है,और बढ़ती ही जा रही है असली वालों का पता नहीं.जब भी नेट चालू करो एक दो फ्रेन्ड रिक्वेस्ट मिलती ही हैं सच कहूँगा ज्यादातर दोस्त अड़ोस पड़ोस के ही होते हैं घर के सामने से निकल जाते हैं पर जन्मदिन की बधाई फेसबुक पर ही देते हैं फ़ेसबुक वाले दोस्तों का हाल जानने के बाद ख़्याल आता है कि पत्नी का हाल तो पूछा ही नहीं बड़ी उत्साहित थी, शायद बच्ची की किसी कारस्तानी के बारे में बताना चाहती थी उसकी बात सुन ही नहीं पाया, और अब तो वह सो गयी है
आपमें से बहुत लोग बिछड़े दोस्तों के मिलने की बात कहेंगे, इंटरनेट को एक क्रांति एक वरदान बताएँगे, अरे मैं कब इनकार कर रहा हूँ. आप कहेंगे कि हर चीज़ की अति बुरी होती है, और मेरे जैसे लोगों को रियल वर्ल्ड और वर्चुअल वर्ल्ड में संतुलन बनाने की ज़रूरत है.अरे मैंने संतुलन बनाने की बहुत कोशिश की लेकिन अभी यही तय नहीं हो पा रहा है कि रियल वर्ल्ड कहाँ ख़त्म होता है और वर्चुअल वर्ल्ड कहाँ से शुरू होता है, संतुलन बनाऊँ तो कैसे, आप कैसे बनाते हैं जरुर बताना ? बड़ा फ्रस्ट्रेशन होता है मध्यप्रदेश में बिजली की हालत तो सभी को ज्ञात है,कई बार तो स्वयं को समझाना पड़ता है कि इंटरनेट कनेक्शन ड्रॉप होना और बिजली का जाना उतनी बुरी चीज़ नहीं है जितनी लगती है.
क्या हम अकेले पड़ते जा रहे हैं?इसलिए हमें सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ज़रूरत है या सोशल नेटवर्किंग साइट्स ही हमें अकेला बना रही हैं? अकेलेपन के मर्ज़ की दवा हम इंटरनेट से माँग रहे हैं, क्या यह अपनी ही परछाईं को पकड़ने की नाकाम कोशिश सी नहीं लगती?
असली रोग, उसके बाहरी लक्षण और इलाज सब इस जाल के एक सिरे से शुरु होते हैं थोड़ी दूर जाकर उलझ जाते हैं, दुसरा सिरा कभी नहीं मिलता.
अपने कमरे में बैठकर आप पूरी दुनिया से जुड़ जाते हैं और अपने ही घर से कट जाते हैं.
वर्चुअल आफिस,वर्चुअल दोस्त, वर्चुअल खेल, वर्चुअल बर्थडे केक/कार्ड ,वर्चुअल गिफ्ट्स,
और साथ में ढेर सारा रियल अकेलापन, रियल बेचैनी.

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