मुझे डिस्कवरी चैनल देखने का थोड़ा बहुत शौक़ है.एक बार मैंने अंटार्कटिका पर एक कार्यक्रम देखा था.उसमें दिखाया गया था कि गर्मियों में पेंगुइन कैसे वहां भोजन की तलाश में जमा होती हैं.वो लाखों की तादात में पहुंचती हैं.मगर बर्फीले पानी में पहले गोता लगाने की हिम्मत किसी की नहीं होती.वो सब इंतज़ार ही करती रहती हैं किसी एक की पहल का क्योंकि नीचे पानी में विशालकाय समुद्री मछलियां भी भोजन की ताक में चक्कर लगा रही होती हैं.वहां सबसे बड़ा सवाल ये होता है कि कौन पहले गोता लगाकर पता लगाए कि नीचे ख़तरा है या नहीं है.उस लाखों की भीड़ में जो सबसे आगे खड़ा होता है उसे ज़ोर का धक्का लगता है और वो नीचे जा गिरता है.अब सब ये तमाशा देख रहे होते हैं कि वो ज़िंदा बाहर निकल पाता है या नहीं.लेकिन जैसे ही वो सुरक्षित बाहर निकलता है किनारे पर खड़ी लाखों पेंगुइन गोता लगा देती हैं.
इस कहानी से दो सीख मिलती है.
एक जीने के लिए सबको भोजन चाहिए.हम भारतीय कुछ ऐसे ही बेचारे हैं.हम डरपोक हैं इसलिए हमेशा शूरवीरों की तलाश में रहते हैं.यही कि सबसे पहले कौन क़ुर्बानी दे.मगर हम ये ही नहीं समझ पाते कि अगर ठान लिया जाए तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है.
दूसरी सीख कि एक आदमी काफ़ी होता है वक़्त को बदलने के लिए.मगर कोई अपनी ताक़त आज़मा कर तो देखे.जिस दिन हर एक घऱ से एक-एक हिंदुस्तानी देश की खातिर निकलेगा तब देख लीजिएगा हिंदुस्तान का हर एक गली-कूचा तहरीर चौक बन जाएगा और तभी निकलेगा बदलाव का सूरज.
No comments:
Post a Comment