Saturday, January 26, 2013

"कहा-सुना" काल

राजनीति और मीडिया का ' कहा सुना काल'चल रहा है.कोई  कर कुछ नहीं रहा है बस इसने ये कहा उसने वो कहा पर ही रोज कच-कच होती रहती है.हम क्यों ध्यान देते हैं की शिंदे ने ये कहा या गडकरी ने वो कहा.जिनमे कोई काम करने की कोई नीतिगत निर्णय लेने की कुव्वत नहीं उनकी बक-बक का क्या बुरा मानना और क्या उस पर बहस करना.जरा ये तो सोचें की इन्होने किया क्या है.
अरे ये मंत्री पद या पार्टी प्रमुख पद या उपाध्यक्ष पद  कोई इन लोगों को योग्यता के आधार पर थोड़े ही मिला हुआ है ये तो सब क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधने और चाटुकारिता के लिए पार्टी ने इन्हें इन पदों पर बिठा रखा है खासकर राजनीतिज्ञों की बातों को ज्यादा तवज्जो देने का ही ये नतीजा है की ये लोग कुछ करने से ज्यादा बोलने बताने पर ध्यान देने लगे है.