Sunday, September 26, 2010

कोई बताए मेरी मातृभाषा

एक बहुत बड़ा विद्वान अकबर के दरबार में पहुँचा. उसे बहुत सी भाषाएँ आती थीं. उसने चुनौती रखी कि अकबर के दरबार में कोई बताए कि उसकी मातृभाषा क्या है. किसी को कुछ नहीं सूझा. बीरबल की बारी आई तो उन्होंने कहा कि वे अगली सुबह इसका जवाब देंगे.
ठिठुराने वाली ठंड की रात में बीरबल ने सोते हुए विद्वान पर ठंडा पानी फेंक दिया और वह विद्वान उठ कर अपनी मातृभाषा में गालियाँ बकने लगा.
अकबर को जवाब मिल गया था.
कहने का अर्थ यह कि खीझ और ग़ुस्से में, बेचारगी और लाचारगी में आदमी अपनी सारी विद्वत्ता भूल कर अपनी मातृभाषा बोलने लगता है.इंसान जब तक मुंह बंद रखता है तो थोड़ा बहुत अपनी भाव भंगिमा के इशारों से अपने बारे में बता देता है ! लेकिन असली चरित्र उसकी वाणी ही उभार का सामने लाती है.वाणी में शालीनता बहुत जरूरी है भाई!
भाषा विद्वानों से नहीं आम लोगों से चलती है

हाल ही में अंग्रेजी भाषा में शब्दों का भंडार 10 लाख की गिनती को पार कर गया पर हमारी मातृभाषा हिंदी का क्या, जिसमें अभी तक मात्र 1 लाख 20 हज़ार शब्द ही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेजी भाषा का 10 लाख वां शब्द 'वेब 2.0' एक पब्लिसिटी का हथकंडा है और कुछ नहीं। जो भी हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक शब्द हैं।
विभिन्न भाषाओं में शब्द-संख्या
अंग्रेजी- 10,00,000
चीनी- 500,000+
जापानी- 232,000
स्पेनिश- 225,000+
रूसी- 195,000
जर्मन- 185,000
हिंदी- 120,000
फ्रेंच- 100,000
(स्रोत- ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर 2009)


अंग्रेजी में उन सभी भाषाओं के शब्द शामिल कर लिए जाते हैं जो उनकी आम बोलचाल में आ जाते हैं.अंग्रेजी शब्दकोश में उर्दू और संस्कृत के ढेरों शब्द हैं जैसे अवतार,धर्म,कर्म‌,लूट,पैजामा,कचेहरी [source-Wikipedia]इत्यादि लेकिन हिंदी में ऐसा नहीं किया जाता।क्योंकि हिन्दी पर यूजर्स से ज्यादा विद्वान हावी है,जब जय हो अंग्रेजी में शामिल हो सकता है, तो फिर हिंदी में या, यप, हैप्पी, बर्थडे आदि जैसे शब्द क्यों नहीं शामिल किए जा सकते? वेबसाइट, लागइन, ईमेल, आईडी, ब्लाग, चैट जैसे न जाने कितने शब्द हैं जो हम हिंदीभाषी अपनी जुबान में शामिल किए हुए हैं लेकिन हिंदी के विद्वान इन शब्दों को हिंदी शब्दकोश में शामिल नहीं करते। कोई भाषा विद्वानों से नहीं आम लोगों से चलती है। यदि ऐसा नहीं होता तो लैटिन और संस्कृत खत्म नहीं होतीं और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाएं पनप ही नहीं पातीं। उर्दू तो जबरदस्त उदाहरण है। वही भाषा सशक्त और व्यापक स्वीकार्यता वाली बनी रह पाती है जो नदी की तरह प्रवाहमान होती है अन्यथा वह सूख जाती है।

Friday, September 24, 2010

नाम रखने की कवायद

जैसे ही नर्से आकर बताती है की आपको बिटिया हुई है, ठीक उसी समय इस बात की भी डिलीवरी हो जाती है कि बच्ची का नाम क्या रखा जाए.? मौजूदा समय में बच्चे का नाम रखना उसे पैदा करने से भी बड़ी चुनौती है। मां-बाप चाहते हैं कि नाम कुछ ऐसा हो जो डिफरेंट साउंड करे। सब्सटेंस हो न हो, स्टाइल का होना जरूरी है।
अर्थ में मात खा जाए, लेकिन अदा में खरा उतरे। फिर बेशक बच्चे को जीवन भर जेब में स्पष्टीकरण लेकर घूमना पड़े कि उसके नाम का क्या मतलब है? जब भी कोई पूछे कि बिटिया तुम्हारे नाम का मतलब क्या है.तो बच्ची पूछने वाले को बुकलेट थमा दे, ये पढ़ लीजिए। इसमें शब्द की उत्पत्ति से मेरे नाम की उत्पत्ति तक सबकुछ समझाया गया है। ऐसी ही मुसीबत में कुछ दिनों से में भी फंसा हूँ।
धरती पर बिटिया का पदार्पण हुए नौ महीने बीत चुके हैं, लेकिन गुलगुल,गुडिया,बिट्टी,पुच्ची,के बीच फंसा हुआ हूँ।कामवाली बाइयों से लेकर नामांकन को अधिकृत दादा दादी और बुआ तक जिसकी जुबान पर जो आता है वो पुकारता है। हर कोई उम्मीद करता है कि उसके पुकारे नाम पर बच्ची मुस्कुराए। उम्मीद करने वालों में वो लोग भी हैं जो जीवन में दो मोबाइल नंबर तक याद नहीं रख पाते और नौ महीने के बच्चे से उम्मीद करते हैं कि वो पांच-पांच नाम याद रख ले।
इस सब पर एक्सक्लूसिव नाम रखने की चाह ऐसी है कि जो नाम रखना है वो दूर तक रिश्तेदार और पड़ोसियों में किसी का नहीं होना चाहिए। नेट से लेकर बच्चों के नाम सुझाने वाली कितनी ही किताबों की खाक मैंने छान डाली है मगर नाम तय नहीं हुआ। एकाध नाम जो ठीक लगे वे बुजुर्गो से पुकारे नहीं जाते और जो बड़े बुजुर्ग सुझाते हैं वो पचास के दशक की ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों की हीरोइनों पहले ही रख चुकी हैं।
फिर किसी ने सुझाव भी दिया कि अगर हिंदु धर्म या हिंदी भाषा इसमें मदद नहीं कर रही है तो बच्चे का कोई चाइनीज नाम रख दो। इससे एक तो वह डिफरेंट साउंड करेगा, दूसरे जीवन भर अपने नाम के कारण चर्चा का विषय बना रहेगा। जैसे-हू जिंताओ,आंग सां सु की टाइप कुछ। या फिर किसी विदेशी नाम के साथ भारतीय ना मिक्स करके रख दिया जाए, जैसे लारा दत्ता,सुनीता विलियम आदि मगर बिटिया की माँ इसपर भी सहमत नहीं।
फिर एक बात आई कि एक ट्रेंड यह भी रहा है कि बच्चे के पैदा होने के समय जो फिल्म या हिरोइन हिट हो, उसके नाम पर बच्चे का नाम रख दिया जाए। एक ने कहा भी अगर आप इस तरह का एक्सपेरीमेंट करने के लिए तैयार हैं तो बच्चे का नाम इब्ने बतूता रख दें। इससे पहले कि वह और कुछ कहता,मेरी नजर उस जूते पर पड़ी जो उसके बगल में ही पड़ा था।बतूता के चक्कर में उसका भुर्ता न बन जाए, यह सोच सुझाव देने वाला चुप हो गया।
जब किसी नाम पर सहमति नहीं बनी तो मैंने बिटिया की माँ को सुझाव दिया कि अगर यह काम वाकई इतना मुश्किल है तो हाल-फिलहाल बच्ची का नाम स्थगित रख दो।वैसे भी हम बीमा वाले मेजर होने तक तो बच्चे को कुछ मानते भी कहाँ है , जब बड़ी होगी तो खुद ब खुद अपना नाम रख लेगी। कम से कम कुछ फैंसी नाम ना रख पाने के लिए तुम्हें कोसेगी तो नहीं।बिटिया की माँ ने इसे भी हंसकर टाल दिया।
खैर, एक सुबह मुझे एक आईडिया आया की अपने सभी मित्रों को एक एसएमएस करूँ- मेरी प्यारी बिटिया जिसका जन्म, फलां-फलां तारीख को हुआ हैं उसका नाम रखने में हम आपकी मदद चाहते हैं। नीचे कुछ ऑप्शन दिए हैं- आप अपनी पसंद का नाम बता, हमारी मदद करें। फोन एक हफ्ते तक चलेगा, नतीजे फलां तारीख को घोषित किए जाएंगे। मित्र को जवाब दे, मैं सोचने लगा कि अगर शेक्सपियर और प्रेमचंद आज जिंदा होते तो यह मैसेज मैं उन्हें जरूर फॉरवर्ड करता।