Sunday, September 26, 2010

भाषा विद्वानों से नहीं आम लोगों से चलती है

हाल ही में अंग्रेजी भाषा में शब्दों का भंडार 10 लाख की गिनती को पार कर गया पर हमारी मातृभाषा हिंदी का क्या, जिसमें अभी तक मात्र 1 लाख 20 हज़ार शब्द ही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेजी भाषा का 10 लाख वां शब्द 'वेब 2.0' एक पब्लिसिटी का हथकंडा है और कुछ नहीं। जो भी हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक शब्द हैं।
विभिन्न भाषाओं में शब्द-संख्या
अंग्रेजी- 10,00,000
चीनी- 500,000+
जापानी- 232,000
स्पेनिश- 225,000+
रूसी- 195,000
जर्मन- 185,000
हिंदी- 120,000
फ्रेंच- 100,000
(स्रोत- ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर 2009)


अंग्रेजी में उन सभी भाषाओं के शब्द शामिल कर लिए जाते हैं जो उनकी आम बोलचाल में आ जाते हैं.अंग्रेजी शब्दकोश में उर्दू और संस्कृत के ढेरों शब्द हैं जैसे अवतार,धर्म,कर्म‌,लूट,पैजामा,कचेहरी [source-Wikipedia]इत्यादि लेकिन हिंदी में ऐसा नहीं किया जाता।क्योंकि हिन्दी पर यूजर्स से ज्यादा विद्वान हावी है,जब जय हो अंग्रेजी में शामिल हो सकता है, तो फिर हिंदी में या, यप, हैप्पी, बर्थडे आदि जैसे शब्द क्यों नहीं शामिल किए जा सकते? वेबसाइट, लागइन, ईमेल, आईडी, ब्लाग, चैट जैसे न जाने कितने शब्द हैं जो हम हिंदीभाषी अपनी जुबान में शामिल किए हुए हैं लेकिन हिंदी के विद्वान इन शब्दों को हिंदी शब्दकोश में शामिल नहीं करते। कोई भाषा विद्वानों से नहीं आम लोगों से चलती है। यदि ऐसा नहीं होता तो लैटिन और संस्कृत खत्म नहीं होतीं और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाएं पनप ही नहीं पातीं। उर्दू तो जबरदस्त उदाहरण है। वही भाषा सशक्त और व्यापक स्वीकार्यता वाली बनी रह पाती है जो नदी की तरह प्रवाहमान होती है अन्यथा वह सूख जाती है।

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