Wednesday, April 15, 2020

‘सखि सैंयां तो खूबहि कमात हैं,महंगाई डायन खाए जात है।’
बेशक यह पंक्ति फिल्म का एक पात्र गाता है,लेकिन पूरे देश में जिस सहज तेजी से इन्हें राजनीति से लेकर समाज तक में हाथोंहाथ लिया गया,उससे जाहिर है कि सरल भाषा में कही गई यह बात कवि के अलावा पूरे देश में अन्यत्र भी मनों को अपनी लगी है।
युवा देश की साझा रग को खूब लोकप्रिय यह दूसरा गाना भी छेड़ रहा है,‘मुन्नी बदनाम हुई डार्लिग तेरे लिए,मैं झंडू बाम हुई डार्लिग तेरे लिए..।’इस गाने में भी बहुत सी भावनाएं,भाषाएं और बिंब घुल-मिल गए हैं।हिंदी अलग अलग बोलियों और भाषाओं के मिक्सचर से एक शानदार राष्ट्रीय भाषा बन गयी है.हिन्दी और संगीत के जानकार,पैरोकार,ठेकेदार जैसे लोगों को इन प्रयोगों से होने वाली जलन को अनुभव कर मैं बहुत खुश हो रहा हूँ.

Saturday, January 26, 2013

"कहा-सुना" काल

राजनीति और मीडिया का ' कहा सुना काल'चल रहा है.कोई  कर कुछ नहीं रहा है बस इसने ये कहा उसने वो कहा पर ही रोज कच-कच होती रहती है.हम क्यों ध्यान देते हैं की शिंदे ने ये कहा या गडकरी ने वो कहा.जिनमे कोई काम करने की कोई नीतिगत निर्णय लेने की कुव्वत नहीं उनकी बक-बक का क्या बुरा मानना और क्या उस पर बहस करना.जरा ये तो सोचें की इन्होने किया क्या है.
अरे ये मंत्री पद या पार्टी प्रमुख पद या उपाध्यक्ष पद  कोई इन लोगों को योग्यता के आधार पर थोड़े ही मिला हुआ है ये तो सब क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधने और चाटुकारिता के लिए पार्टी ने इन्हें इन पदों पर बिठा रखा है खासकर राजनीतिज्ञों की बातों को ज्यादा तवज्जो देने का ही ये नतीजा है की ये लोग कुछ करने से ज्यादा बोलने बताने पर ध्यान देने लगे है.

Sunday, February 12, 2012

SIP एक धीमा ज़हर है

शेयर बाजार की बजाए म्युचुअल फंड में निवेश करके अगर आप अपने धन को सुरक्षित समझ रहे हैं तो आप गलत हैं। पिछले एक साल में सभी म्युचुअल फंडों की साठ प्रतिशत से ज्यादा स्कीमें ऐसी हैं जिनमें निवेशकों का लगाया गया पैसा स्वाहा हो गया है। इन स्कीमों का मुनाफा एक साल में घाटे में बदल गया है। जिन स्कीमों में लोगों को मुनाफा हुआ भी है, उनमें भी ज्यादातर का मुनाफा औसत से कम रहा है। म्युचुअल फंड पर नजर रखने वाली संस्था वैल्यू रिसर्च के मुताबिक करीब 47 में से 37 स्कीमों के निवेशकों को बीते एक साल में घाटा हुआ है। जबकि माना जाता है कि म्युचुअल फंड में निवेश बाजार के उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रहता है।और इसी सुरक्षा के लिए तो निवेशक फंड मेनेजर की सेवा लेता है.
ध्यान रखें आजकल म्युचुअल फंड कंपनियां सिस्टमएटिक इन्वेस्टमेंट प्लान SIP के नाम से निवेशकों को ठग रही है.निवेशकों को किसी बड़े होटल में अवेरनेस प्रोग्राम के नाम से बुलाया जाता है और वहाँ गरिष्ठ स्वल्पाहार या भोजन कराकर उन्हें इन योजनाओ में फंसा लिया जाता है.SIP के माध्यम से कंपनियों के पास तो प्रतिमाह एक बड़ी राशि एकत्रित होकर आ जाती है जिससे कंपनी के अत्याधुनिक वातानुकूलित कार्यालयों का संचालन होता रहता है और फंड मेनेजर की मोटी तनख्वाह निकलती रहती है किन्तु निवेशकों को बाजार में आई तेजी का लाभ पूरी तरह नहीं मिलता तकाजा करने पर एजेंट निवेशकों को दीर्घकालीन नजरिया रखने की बात कहकर योजना में अटकाए रखते है.मेरी स्वयं की कुछ SIP में मै लगभग 40 किश्ते भर चुका हू {आवश्यकता होने पर मै योजना का विवरण उपलब्ध करा सकता हू } और आज इनका वर्तमान मूल्य भरी हुई राशि से भी कम है चालीस किश्ते मतलब तीन वर्ष से भी अधिक समय में अगर योजना में मुनाफा नहीं दिख रहा है तो फिर कैसे आश्वस्त हुआ जाय की सौ किश्ते भरने के बाद मुनाफा होगा.शासकीय बांड,भविष्य निधि PF,लोकभविष्य निधि PPF.राष्ट्रीय बचत पत्र NSC ही निवेश का बेहतर विकल्प हैSIP एक धीमा ज़हर है सावधान रहें.

Wednesday, December 28, 2011

मुझे तो परमवीर चक्र दो

भारत सरकार ने हाल ही में भारत रत्न की पात्रता की शर्तों में बदलाव किया है
प्रथमदृष्टया दिखता है कि सचिन तेंदुलकर को ही ध्यान में रखकर ये बदलाव हुआ है.अब सचिन के लिए नियमों में परिवर्तन किया जा रहा है किसी एक व्यक्ति को सम्मानित करने के लिए नीतियों में परिवर्तन किया जा रहा हो तो यह अति है.गत वर्षों दुनिया का सबसे बड़ा और सम्माननीय नोबुल शांति पुरष्कार ओबामा को दे दिया गया जब दुनिया के सबसे बड़े पुरस्कार की ये हालत है तो भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले पद्मश्री से लेकर भारत-रत्न तक की तो बात ही करना मूर्खता होगी.लेकिन यह भी तो सोचिये कि जो पुरस्कार डा० राजेंद्र प्रसाद को मिला वही श्रीमती इंदिरा गाँधी को भी मिला और तो और राजीव गाँधी को भी दे दिया गया.क्या ये सब राजनेता एक जैसे सम्माननीय थे?कल हो सकता है ये पुरस्कार लालू और मायावती को भी मिल जाय.तब तो सब लोग मानेंगे कि इससे अच्छे तो सचिन तेंदुलकर ही थे.
सही है कि सरकारें पुरस्कार देने में मनमानी करती हैं लेकिन अब तक इस प्रकार की मनमानियां एक दायरे में ही होती थी नियमों को ही किसी के लिए बदल दिया गया हो याद नहीं आता है।चाँद तक पहुँचने की कोशिश करना तो ठीक है लेकिन चाँद को ही अपने लिए घसीटने की मानसिकता गलत हैं,इसके निहितार्थ भयानक हैं.कल को कोई जिद कर सकता है कि मुझे परमवीर चक्र चाहिए क्योंकि मैने क्रिकेट के मैदान पर बहुत ही बहादुरी का काम किया है तो क्या इसके लिए भी परिवर्तन किया जाएगा?अरे इतने बड़े सम्मान की कुछ तो गरिमा रखो भाई कल कोई भारत रत्न जब टीवी पर कोल्डड्रिंक,मंजन और साबुन बेचता नज़र आएगा तो अच्छा लगेगा?क्या कहूँ सरकार को तो कोई सरोकार ही नहीं है आपसे हमसे.

Sunday, August 14, 2011

तो आप मुर्ख ही हैं

अगर आप सोच रहे हैं कि पेट्रोल फिर सस्ता होनेवाला है तो UPA सरकार कि नज़र में आप निहायत बेवकूफ़ इंसान हैं
अगर आपको लगता है कि फेसबुक पर SAVE THE TIGER पेज को LIKE करने से TIGER सेव हो जाएंगे तो आप मुर्ख ही हैं
अगर आप सीरियसली सोच रहे हो कि इस सिगरेट के बाद आप सिगरेट को छुओगे भी नहीं तो कसम मार्लबोरो कि आप बहुत बेवकूफ़ हो
अगर आप 1 मेसेज या मेल को 10 लोगों को फारवर्ड करके भगवान से 10 इच्छाएँ पूरी होने कि आशा रखते हो तो वोडाफ़ोन भी तो कहेगा आप बेवकूफ़ हो
अगर आपको लगता है कि लिफ्ट का बटन बार बार दबाने से लिफ्ट जल्दी आ जायेगी तो ओटीस कि कसम आप सा कोइ मुर्ख नहीं
अगर आपको लगता है कि रूपा फ्रंटलाइन पहन कर आप लाइन में सबसे आगे जायेंगे तो राजपाल यादव भी कहेगा आप तो निहायत ही बेवकूफ़ इंसान हैं।
तो फिर बताओ भाई कौन कह रहा है कि आप पढ़े लिखे समझदार इंसान हैं,कोई भी नहीं ना ???

Sunday, July 10, 2011

इस वर्चुअल दुनिया में अकेले हम अकेले तुम

आजकल सिर्फ़ रात को सोने के बाद और सुबह उठने से पहले इंटरनेट की ज़रूरत नहीं रहती. दिन भर दफ़्तर में, सुबह-शाम घर में, और रास्ते में मोबाइल फ़ोन पर हर जगह इंटरनेट की जरुरत महसूस होती है,और जब से यह इन्टरनेट ख़ुद तारों के बंधन से मुक्त हुआ है तबसे उसने हमें और कसकर जकड़ लिया है. वाईफ़ाई यानी वायरलेस इंटरनेट और मोबाइल इंटरनेट के आने के बाद तो ब्लैकबेरी और आईफ़ोन ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है.अरे हर उपकरण में नेट चाहिए.
मेरे फ़ेसबुक और ओरकुट वाले दोस्तों की संख्या 200-300 है,और बढ़ती ही जा रही है असली वालों का पता नहीं.जब भी नेट चालू करो एक दो फ्रेन्ड रिक्वेस्ट मिलती ही हैं सच कहूँगा ज्यादातर दोस्त अड़ोस पड़ोस के ही होते हैं घर के सामने से निकल जाते हैं पर जन्मदिन की बधाई फेसबुक पर ही देते हैं फ़ेसबुक वाले दोस्तों का हाल जानने के बाद ख़्याल आता है कि पत्नी का हाल तो पूछा ही नहीं बड़ी उत्साहित थी, शायद बच्ची की किसी कारस्तानी के बारे में बताना चाहती थी उसकी बात सुन ही नहीं पाया, और अब तो वह सो गयी है
आपमें से बहुत लोग बिछड़े दोस्तों के मिलने की बात कहेंगे, इंटरनेट को एक क्रांति एक वरदान बताएँगे, अरे मैं कब इनकार कर रहा हूँ. आप कहेंगे कि हर चीज़ की अति बुरी होती है, और मेरे जैसे लोगों को रियल वर्ल्ड और वर्चुअल वर्ल्ड में संतुलन बनाने की ज़रूरत है.अरे मैंने संतुलन बनाने की बहुत कोशिश की लेकिन अभी यही तय नहीं हो पा रहा है कि रियल वर्ल्ड कहाँ ख़त्म होता है और वर्चुअल वर्ल्ड कहाँ से शुरू होता है, संतुलन बनाऊँ तो कैसे, आप कैसे बनाते हैं जरुर बताना ? बड़ा फ्रस्ट्रेशन होता है मध्यप्रदेश में बिजली की हालत तो सभी को ज्ञात है,कई बार तो स्वयं को समझाना पड़ता है कि इंटरनेट कनेक्शन ड्रॉप होना और बिजली का जाना उतनी बुरी चीज़ नहीं है जितनी लगती है.
क्या हम अकेले पड़ते जा रहे हैं?इसलिए हमें सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ज़रूरत है या सोशल नेटवर्किंग साइट्स ही हमें अकेला बना रही हैं? अकेलेपन के मर्ज़ की दवा हम इंटरनेट से माँग रहे हैं, क्या यह अपनी ही परछाईं को पकड़ने की नाकाम कोशिश सी नहीं लगती?
असली रोग, उसके बाहरी लक्षण और इलाज सब इस जाल के एक सिरे से शुरु होते हैं थोड़ी दूर जाकर उलझ जाते हैं, दुसरा सिरा कभी नहीं मिलता.
अपने कमरे में बैठकर आप पूरी दुनिया से जुड़ जाते हैं और अपने ही घर से कट जाते हैं.
वर्चुअल आफिस,वर्चुअल दोस्त, वर्चुअल खेल, वर्चुअल बर्थडे केक/कार्ड ,वर्चुअल गिफ्ट्स,
और साथ में ढेर सारा रियल अकेलापन, रियल बेचैनी.

Sunday, June 12, 2011

ना बाबा का ना अन्ना का

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

भारत सरकार से भष्टाचार के लिए बात करना और पाकिस्तान के साथ आतंकवाद की बात करना एक जैसी बात है. दोनों ही मामलों में जो विरोध करेगा सरकार उसको चुप करवाने के लिए पूरा दम लगा देगी मुद्दा कालेधन का हो या भ्रष्टाचार का, सरकार ने समय पर लगाम लगाने में सक्षम न होने के कारण,जनता के आक्रोश को, गुस्से में खीझ कर, जनआंदोलन को कुचलने का प्रयास किया है.यह तो जन आंदोलन, न तो ,बाबा रामदेब का है और न ही अन्ना हजारे का , ये तो जनआक्रोश है.मेरा तो यह भी मानना है की बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे के आंदोलनों के खिलाफ बोलने वाला हर इंसान भ्रष्टाचारी है. सरकार की मंशा साफ नही है, और हाँ बाबा रामदेव भी बहुत बोलते है. इस कारण तर्क - वितर्क व कुतर्क ज़्यादा जल्दी आ रहे हैं और बाबा उसमे उलझ गए है पर उनकी नीयत पर किसीको शक नहीं होना चाहिए.
बाबा यदि महत्वाकांक्षी भी हैं तो क्या गलत है ?लोकतंत्र में राजनीति किसी की बपौती नहीं है. योगी को भी उसमें आने का उतना ही अधिकार है जितना कि भोगी को. भारत की राजनीति भ्रष्टाचारियों से भर गई है जो नहीं चाहते कि कोई अच्छा मनुष्य राजनीति में आए. आग और पानी साथ-साथ तो नहीं रह सकते न. बाबा रामदेव के अनशन पर सरकार की हिंसात्मक कार्रवाई विनाश के लक्षण हैं.माँगे व्यवहारिक न भी हों तो क्या आम आदमी की भावनाओ को लाठी डंडे या आँसू गैस से दबाना चाहिए? अंग्रेज भी ऐसा ही बर्ताव करते थे तो फिर आज़ाद भारत मे क्या बदला है, सिवाय डंडे भाँजने वालों के चेहरे के? दुनिया में जहां भी एक परिवार का राज रहा है - चाहे वो ट्यूनिशिया हो, मिस्र हो, लीबिया हो, सीरिया या बहरीन हो, वहां के शासक विरोधियों को तितर बितर करने की कोशिश करते हैं. जो नई दिल्ली में हुआ, वो सीरिया और बहरीन में चल रहे गतिरोध से कुछ अलग नहीं है.