Sunday, June 12, 2011

ना बाबा का ना अन्ना का

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

भारत सरकार से भष्टाचार के लिए बात करना और पाकिस्तान के साथ आतंकवाद की बात करना एक जैसी बात है. दोनों ही मामलों में जो विरोध करेगा सरकार उसको चुप करवाने के लिए पूरा दम लगा देगी मुद्दा कालेधन का हो या भ्रष्टाचार का, सरकार ने समय पर लगाम लगाने में सक्षम न होने के कारण,जनता के आक्रोश को, गुस्से में खीझ कर, जनआंदोलन को कुचलने का प्रयास किया है.यह तो जन आंदोलन, न तो ,बाबा रामदेब का है और न ही अन्ना हजारे का , ये तो जनआक्रोश है.मेरा तो यह भी मानना है की बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे के आंदोलनों के खिलाफ बोलने वाला हर इंसान भ्रष्टाचारी है. सरकार की मंशा साफ नही है, और हाँ बाबा रामदेव भी बहुत बोलते है. इस कारण तर्क - वितर्क व कुतर्क ज़्यादा जल्दी आ रहे हैं और बाबा उसमे उलझ गए है पर उनकी नीयत पर किसीको शक नहीं होना चाहिए.
बाबा यदि महत्वाकांक्षी भी हैं तो क्या गलत है ?लोकतंत्र में राजनीति किसी की बपौती नहीं है. योगी को भी उसमें आने का उतना ही अधिकार है जितना कि भोगी को. भारत की राजनीति भ्रष्टाचारियों से भर गई है जो नहीं चाहते कि कोई अच्छा मनुष्य राजनीति में आए. आग और पानी साथ-साथ तो नहीं रह सकते न. बाबा रामदेव के अनशन पर सरकार की हिंसात्मक कार्रवाई विनाश के लक्षण हैं.माँगे व्यवहारिक न भी हों तो क्या आम आदमी की भावनाओ को लाठी डंडे या आँसू गैस से दबाना चाहिए? अंग्रेज भी ऐसा ही बर्ताव करते थे तो फिर आज़ाद भारत मे क्या बदला है, सिवाय डंडे भाँजने वालों के चेहरे के? दुनिया में जहां भी एक परिवार का राज रहा है - चाहे वो ट्यूनिशिया हो, मिस्र हो, लीबिया हो, सीरिया या बहरीन हो, वहां के शासक विरोधियों को तितर बितर करने की कोशिश करते हैं. जो नई दिल्ली में हुआ, वो सीरिया और बहरीन में चल रहे गतिरोध से कुछ अलग नहीं है.

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