Tuesday, October 19, 2010

भाषा,बोली,संगीत सभी का बेहद आकर्षक फ्यूजन

ससुराल गेंदा फूल के बाद ‘सखि सैंयां तो खूबहि कमात हैं,महंगाई डायन खाए जात है।’
बेशक यह पंक्ति फिल्म का एक पात्र गाता है,लेकिन पूरे देश में जिस सहज तेजी से इन्हें राजनीति से लेकर समाज तक में हाथोंहाथ लिया गया,उससे जाहिर है कि सरल भाषा में कही गई यह बात कवि के अलावा पूरे देश में अन्यत्र भी मनों को अपनी लगी है।
युवा देश की फडकती रगों को खूब लोकप्रिय यह दूसरा गाना भी छेड़ रहा है,‘मुन्नी बदनाम हुई डार्लिग तेरे लिए,मैं झंडू बाम हुई डार्लिग तेरे लिए..।’इस गाने में भी बहुत सी भावनाएं,भाषाएं और बिंब घुल-मिल गए हैं।हिंदी अलग अलग बोलियों और भाषाओं के मिक्सचर से एक शानदार राष्ट्रीय भाषा बन गयी है.हिन्दी और संगीत के समझदार,जानकार,पैरोकार,ठेकेदार जैसे लोगों को इन प्रयोगों से होने वाली जलन को में स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ.भाषा,बोली,संगीत सभी का बेहद आकर्षक फ्यूजन.

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