Sunday, September 26, 2010

कोई बताए मेरी मातृभाषा

एक बहुत बड़ा विद्वान अकबर के दरबार में पहुँचा. उसे बहुत सी भाषाएँ आती थीं. उसने चुनौती रखी कि अकबर के दरबार में कोई बताए कि उसकी मातृभाषा क्या है. किसी को कुछ नहीं सूझा. बीरबल की बारी आई तो उन्होंने कहा कि वे अगली सुबह इसका जवाब देंगे.
ठिठुराने वाली ठंड की रात में बीरबल ने सोते हुए विद्वान पर ठंडा पानी फेंक दिया और वह विद्वान उठ कर अपनी मातृभाषा में गालियाँ बकने लगा.
अकबर को जवाब मिल गया था.
कहने का अर्थ यह कि खीझ और ग़ुस्से में, बेचारगी और लाचारगी में आदमी अपनी सारी विद्वत्ता भूल कर अपनी मातृभाषा बोलने लगता है.इंसान जब तक मुंह बंद रखता है तो थोड़ा बहुत अपनी भाव भंगिमा के इशारों से अपने बारे में बता देता है ! लेकिन असली चरित्र उसकी वाणी ही उभार का सामने लाती है.वाणी में शालीनता बहुत जरूरी है भाई!

1 comment:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

आज के ज़माने में बीरबल ग़लती कर जाता जब पानी पड़ते ही सुनना पड़ता - रास्कल.... :)